यह दास्ताँ भी अब अधूरी रहेगी,
तेरे मेरे बीच में अब दूरी रहेगी,
बहुत रोई हूँ तुझे याद करके,
अब यह आंखें ना गीली रहेंगी.
ना शिकवा करेंगे किसी से अब,
ना दर्द अपना दिखायेंगे,
तेरे दिए दर्द के साथ ही ,
अब हम मुस्कुराएंगे.
तू कर ले लाख कोशिश,
पर अब ना टूटेंगे हम ,
खुशियों से सजाई है महफिल,
अब दूर भाग जायेंगे घाम.
तेरी ज़रूरत नही अब मुझे,
तेरी याद ही काफी है,
मेरी सोती हुई रातों के लिए,
तेरा एहसास ही काफ़ी है.
जा दूर जा मुझसे,
फिर ना वापस आना कभी,
आना तोह ऐसे की,
दूर ना जाना कभी.
अपनी भाषा में पढे
Saturday 3 May 2008
Monday 24 March 2008
चाहत
तेरे लबों से है रंगत फोलों में
तेरी आंखों से है चमक सितारों में
तू जो मुस्कुराके देख ले आसमान को
चाँद भी शरमाके झुक जाए तेरे क़दमो में
दुनिया में लाखों हसीं हैं
तू एक हसीन है लाखों में
सो रहे थे जज्बात मेरे तेरे दीदार से पहले
तुझे देख कर जागी है मोहब्बत इस दिल में
जो तुम मिल गई अगर मुझ को आये सनम
रोनक हो जायेगी मेरी जिंदगानी में
मैंने तेरे प्यार में दिलको ज़ख्मी कर लिया है
अब तो चुपाले मुझको अपने आँचल की आड़ में
कुबूल कर मेरे प्यार को आये जाने -ऐ -फसीह
न मिलेगा मुझ जैसा आशिक सारी दुनिया में
तेरी आंखों से है चमक सितारों में
तू जो मुस्कुराके देख ले आसमान को
चाँद भी शरमाके झुक जाए तेरे क़दमो में
दुनिया में लाखों हसीं हैं
तू एक हसीन है लाखों में
सो रहे थे जज्बात मेरे तेरे दीदार से पहले
तुझे देख कर जागी है मोहब्बत इस दिल में
जो तुम मिल गई अगर मुझ को आये सनम
रोनक हो जायेगी मेरी जिंदगानी में
मैंने तेरे प्यार में दिलको ज़ख्मी कर लिया है
अब तो चुपाले मुझको अपने आँचल की आड़ में
कुबूल कर मेरे प्यार को आये जाने -ऐ -फसीह
न मिलेगा मुझ जैसा आशिक सारी दुनिया में
Saturday 1 March 2008
फारूकी
दुःख तू यह हे के अपने ही हाथों
घिर महफूज़ हू गया जीवन
हम ने घाम में इलाज दूंध लिया
वरना सुब ला-इलाज बैठे हैं
इशाक की राह पर्ने वलून को
हिजर बी-चैन कर के मरता हे
अपना अपना नसीब होता हे
हम भरे शहर में अकेले हैं
तुम ने दिल का कहा, तू फिर सुन लू
हम ने बुक्सा तुम्हें कियामत तक
घिर महफूज़ हू गया जीवन
हम ने घाम में इलाज दूंध लिया
वरना सुब ला-इलाज बैठे हैं
इशाक की राह पर्ने वलून को
हिजर बी-चैन कर के मरता हे
अपना अपना नसीब होता हे
हम भरे शहर में अकेले हैं
तुम ने दिल का कहा, तू फिर सुन लू
हम ने बुक्सा तुम्हें कियामत तक
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शायरों की शायरी
खुदा ही खुदा
इधर खुदा है, उधर खुदा है,
जिधर देखो उधर खुदा है,
इधर-उधर बस खुदा ही खुदा है
जिधर नही खुदा है….उधर कल खुदेगा!
प्यार इसे कहते हैं
जवानी को ज़िन्दगी की निखार कहते हैं,
पथ्जद को चमन का मज्धार कहते हैं,
अजीब चलन हैं दुनिया का यारो,
एक धोका हैं जिसे हम सब “प्यार” कहते हैं !
इधर खुदा है, उधर खुदा है,
जिधर देखो उधर खुदा है,
इधर-उधर बस खुदा ही खुदा है
जिधर नही खुदा है….उधर कल खुदेगा!
प्यार इसे कहते हैं
जवानी को ज़िन्दगी की निखार कहते हैं,
पथ्जद को चमन का मज्धार कहते हैं,
अजीब चलन हैं दुनिया का यारो,
एक धोका हैं जिसे हम सब “प्यार” कहते हैं !
मेरी अधूरी दास्ताँ
यह दास्ताँ भी अब अधूरी रहेगी,
तेरे मेरे बीच में अब दूरी रहेगी,
बहुत रोई हूँ तुझे याद करके,
अब यह आंखें ना गीली रहेंगी.
ना शिकवा करेंगे किसी से अब,
ना दर्द अपना दिखायेंगे,
तेरे दिए दर्द के साथ ही ,
अब हम मुस्कुराएंगे.
तू कर ले लाख कोशिश,
पर अब ना टूटेंगे हम ,
खुशियों से सजाई है महफिल,
अब दूर भाग जायेंगे घाम.
तेरी ज़रूरत नही अब मुझे,
तेरी याद ही काफी है,
मेरी सोती हुई रातों के लिए,
तेरा एहसास ही काफ़ी है.
जा दूर जा मुझसे,
फिर ना वापस आना कभी,
आना तोह ऐसे की,
दूर ना जाना कभी.
तेरे मेरे बीच में अब दूरी रहेगी,
बहुत रोई हूँ तुझे याद करके,
अब यह आंखें ना गीली रहेंगी.
ना शिकवा करेंगे किसी से अब,
ना दर्द अपना दिखायेंगे,
तेरे दिए दर्द के साथ ही ,
अब हम मुस्कुराएंगे.
तू कर ले लाख कोशिश,
पर अब ना टूटेंगे हम ,
खुशियों से सजाई है महफिल,
अब दूर भाग जायेंगे घाम.
तेरी ज़रूरत नही अब मुझे,
तेरी याद ही काफी है,
मेरी सोती हुई रातों के लिए,
तेरा एहसास ही काफ़ी है.
जा दूर जा मुझसे,
फिर ना वापस आना कभी,
आना तोह ऐसे की,
दूर ना जाना कभी.
Monday 25 February 2008
बेनाम सा ये दर्द, ठहर क्यूं नही जाता
बेनाम सा ये दरद, ठहर क्यु नही जाता..
जो बीत गया हैं, वो गुजर क्यू नही जाता...
सब कुछ तो हैं, क्या दुदाती हैं ये निगाहे
क्या बात हैं, में वक्त पे घर क्यु नही जाता..
वो एक चेहरा तो नही सारे जहा में...
जो दूर हैं वो दिल से उतर क्यो नही जाता...
देखता हू में अपनी ही उलझी हुई, राहों का तमाशा
जाते हैं सब जिधर, मैं उधर क्यो नही जाता
वो नाम ना कब से, ना चेहरा ना बदन हैं..
वो खवाब हैं तो बिखर क्यो नही जाता....
जो बीत गया हैं, वो गुजर क्यू नही जाता...
सब कुछ तो हैं, क्या दुदाती हैं ये निगाहे
क्या बात हैं, में वक्त पे घर क्यु नही जाता..
वो एक चेहरा तो नही सारे जहा में...
जो दूर हैं वो दिल से उतर क्यो नही जाता...
देखता हू में अपनी ही उलझी हुई, राहों का तमाशा
जाते हैं सब जिधर, मैं उधर क्यो नही जाता
वो नाम ना कब से, ना चेहरा ना बदन हैं..
वो खवाब हैं तो बिखर क्यो नही जाता....
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